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Toggleभीष्म पितामह: परिचय
भीष्म पितामह (Bhishma Pitamah) महाभारत के एक प्रमुख और प्रभावशाली पात्र थे। उनका असली नाम देवव्रत था, लेकिन उनके अद्वितीय बलिदान के कारण उन्हें ‘भीष्म’ की उपाधि प्राप्त हुई। वे कौरव और पांडव दोनों के गुरु, संरक्षक और मार्गदर्शक थे। भीष्म पितामह की निष्ठा, ज्ञान और कर्तव्यपरायणता ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे सम्मानित और श्रद्धेय व्यक्तित्वों में स्थान दिलाया।
भीष्म पितामह का जन्म और प्रारंभिक जीवन
भीष्म पितामह का जन्म गंगा नदी और हस्तिनापुर के राजा शांतनु से हुआ था। देवव्रत ने युवावस्था में ही अपनी वीरता और योग्यता का परिचय दिया। उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और सिंहासन का त्याग कर दिया। उनके इस महान बलिदान के कारण उन्हें ‘भीष्म’ कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है ‘भीषण व्रतधारी’।
महाभारत में भीष्म पितामह की भूमिका
भीष्म पितामह महाभारत के युद्ध में कौरवों के सेनापति थे। उनकी युद्धकला, नीति और वीरता ने उन्हें एक अद्वितीय योद्धा के रूप में स्थापित किया। भीष्म ने अपने वचन का पालन करते हुए कौरवों का साथ दिया, हालांकि उनके हृदय में पांडवों के प्रति स्नेह था। भीष्म ने युद्ध के दसवें दिन तक कौरव सेना का नेतृत्व किया, जब तक कि उन्होंने अपनी इच्छामृत्यु का वरदान धारण करते हुए शरशय्या पर शयन नहीं किया।
भीष्म पितामह का बलिदान
भीष्म पितामह का बलिदान भारतीय इतिहास में अमर है। उन्होंने महाभारत युद्ध के दसवें दिन अपनी इच्छामृत्यु का वरदान का प्रयोग किया और शरशय्या पर लेट गए। उन्होंने उत्तरायण के समय तक अपने प्राण त्यागने का इंतजार किया, ताकि उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो सके। उनका यह बलिदान उनके महान व्यक्तित्व, निष्ठा और धर्मनिष्ठा का प्रमाण है।
भीष्म पितामह की शिक्षा और आदर्श
भीष्म पितामह ने जीवनभर धर्म, कर्तव्य और निष्ठा का पालन किया। उनकी शिक्षा और आदर्श आज भी प्रेरणादायक हैं। वे न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक महान विचारक और नीति निर्माता भी थे। भीष्म ने हमें यह सिखाया कि कर्तव्य के मार्ग पर चलते हुए व्यक्तिगत इच्छाओं और भावनाओं का त्याग करना चाहिए।
भीष्म पितामह के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. भीष्म पितामह का असली नाम क्या था?
भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था। भीष्म की उपाधि उन्हें उनके महान बलिदान के कारण मिली थी।
2. भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत क्यों लिया?
भीष्म पितामह ने अपने पिता राजा शांतनु की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया। यह व्रत उन्होंने अपनी सौतेली मां सत्यवती के पुत्रों को सिंहासन देने के लिए लिया था।
3. भीष्म पितामह की इच्छामृत्यु का वरदान क्या था?
भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान था, जिससे वे अपनी इच्छा से मृत्यु का चयन कर सकते थे। उन्होंने यह वरदान अपने पिता से प्राप्त किया था।
4. भीष्म पितामह का बलिदान क्या था?
भीष्म पितामह ने महाभारत युद्ध में कौरवों का साथ दिया और दसवें दिन शरशय्या पर लेट गए। उन्होंने उत्तरायण के समय तक अपने प्राण त्यागने का इंतजार किया, जिससे उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो सके।
5. भीष्म पितामह का महाभारत में क्या योगदान था?
भीष्म पितामह महाभारत युद्ध में कौरवों के सेनापति थे। उनकी युद्धकला, नीति और वीरता ने उन्हें एक अद्वितीय योद्धा के रूप में स्थापित किया। उनका योगदान महाभारत के इतिहास में अमूल्य है।
Conclusion:
भीष्म पितामह का जीवन और उनके आदर्श हमें धर्म, निष्ठा और कर्तव्य की महत्ता सिखाते हैं। उनकी कहानी हमें यह समझाती है कि सही मार्ग पर चलते हुए बलिदान देना भी आवश्यक हो सकता है। भारतीय इतिहास में भीष्म पितामह का योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।